युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक
सूर्योदय
भोर होने वाली थी, सूर्य की किरणों ने
क्षितिज में अपनी लाली बिखेर दी थी, आश्रम क्योंकि बहुत
उँचाई पर हैं इसलिए सुबह की सबसे पहली किरण आश्रम को दस्तक देती हैं। आश्रम से
थोड़ी दूर पर भोमी पर्वत श्रृंखलाओं से बहुत सी जल धाराएँ आकर घाटी में झरने की
शक्ल में गिरती हैं। इसी घाटी के उपर झरने के उद्गम से कुछ अंतराल पर है यह आश्रम।
इस आश्रम तक आने जाने के लिए घाटी के बगल से एक सीधी चढ़ाई है और अगर इस रास्ते
उतरते हुए आगे जाएं तो तापी नदी का किनारा दूर तक साथ चलता है।
भोर
के हल्के से उजाले में पाँच आकृतियाँ तापी नदी के मद्धिम प्रवाह में खड़ी थी, ये आकृतियाँ
थी वेग, दुष्यंत, प्रताप, मेघ और विधुत की। सूर्योदय से पहले यहाँ स्नान करना, उगते
हुए सूर्य को प्रणाम करना, इस प्रकार से ही इन सबकी दिनचर्या की शुरुआत होती है। सूर्योदय
होने मे अभी भी समय बाकी था परन्तु सुदर्शन, जो की आश्रम मे सहायक है, उसकी पुकार ने
सब का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। उन्होंने देखा वह किनारे पर खड़ा होकर उन्हे पुकार
रहा था।
“आप सभी को गुरु जी बुला रहे हैं, जल्दी पहुँचिए
आप लोग...” वह लगभग चिल्ला के बोल रहा था क्योंकि एक तो
नदी का शोर और दुसरा किनारा सभी से बहुत दूर था।
“क्या कह रहा है सुदर्शन, कुछ सुनाई दे रहा है
क्या तुम लोगों को?” वेग ने बाकी सब की ओर देख कर पूछा
तो सब ने अपनी गर्दन ना में हिला दी।
“चलो बाहर चल कर के देखते हैं, इस पर कौन सी
प्रलय आन पड़ी है जो यह इतने भोर में अपना सब काम छोड़ कर गले का व्यायाम कर रहा
है?” प्रताप बाहर की ओर बढ़ते हुए बोला तो सब उसके साथ
बाहर चल दिए।
*
चेहरे पर एक अनोखा सा तेज, मजबूत
कद काठी और लगभग 60 वर्ष की आयु। आश्रम के मुख्य कक्ष में गुरु शौर्य अपने शिष्यों
के सामने बैठे हैं। सभी के चेहरों पर उत्सुकता स्पष्ट झलक रही है, सहज ही था क्योंकि आज सूर्योदय से पहले ही गुरु
शौर्य ने सभी को एक साथ बुलाया था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
“मुझे यह बताते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है कि आप लोगों ने अपनी शिक्षा
लगभग पूरी कर ली है और अब अतिशीघ्र आप लोग हमारास्थान लेने
वाले हैं।” शौर्य इतना कहकर एक क्षण को चुप हो गये और
सभी की आँखों में देखने लगे। अचानक मिली इस सूचना से सभी के चेहरों के भाव बदल से
गये थे।
“आप लोगों के साथ इतना समय कैसे बीत गया कुछ पता ही नहीं चला। जो भी है, यह समय तो आना ही था…”
शौर्य ने सब के चेहरों के बदलते रंग को भाँपकर आगे कहा। “आप सभी को अचानक क्या हुआ, क्या आप लोग प्रसन्न नहीं हैं? आप सभी ने इतने
वर्ष जो तपस्या की है वह सब इसी दिन के लिए तो थी और आप के चेहरों पर कोई हर्ष या
प्रसन्नता भी दिखाई नहीं दे रही है।” शौर्य सब के मन की
दशा जानते थे फिर भी उन्होंने बिना प्रकट किए सब को सहज करने का यह प्रयास किया था। परंतु शौर्य के इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं था और सभी एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे।
“नहीं, ऐसा नहीं है गुरु जी, हमें भी प्रसन्नता है परंतु…” विधुत इतना ही कह
पाया।
“बस अचानक से यह समाचार… हम में से किसी को यह
अंदेशा नहीं था इसीलिए कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या कहें?” वेग ने हँसने का प्रयास करते हुए विधुत की बात को पूरा किया।”
“तुम्हारी स्थिति मैं समझता हूँ क्योंकि बिल्कुल ऐसी ही परिस्थिति में एक
समय मैं और मेरे साथी भी थे। परन्तु भरोसा रखो सब कुछ
जल्दी ही सामान्य हो जाएगा।” शौर्य ने कहा परन्तु सब के
चेहरे अभी भी पूर्ववत मुरझाए हुए से थे।
“एक नया प्रारंभ होने वाला है आप लोगों के जीवन में, प्रसन्नता
दिखनी चाहिए आपके चेहरों पर। इस प्रकार आप लोग अच्छे
नहीं दिखते हैं।” शौर्य के इतना कहने पर भी सब के चेहरे
वैसे ही थे। “चलो बाहर चल कर बात करते हैं।”
शौर्य के साथ सभी आश्रम से बाहर खुले में आ गये थे। सूर्य की झलक अब दिखने लगी
थी, उन्होंने उगते हुए सूर्य को देखा फिर एक बार पीछे मुड़कर सब की
ओर देखा और उस दिशा चल दिए जहाँ से झरने का पूरा प्रवाह दिखता है।
“चले आओ, रुको नहीं, मेरे
साथ आओ…” वो फुर्ती से जा रहे थे, किसी को समझ नहीं आया कि शौर्य उन्हें कहाँ और क्यों ले जा रहे हैं? वो उनके साथ चल दिए।
“मेरा
मन भी थोड़ा दुखी है इस बात से कि अब आप लोगों से दूर होने का समय निकट आ गया है,”
शौर्य ने कहना प्रारंभ किया। “परन्तु यह तो पहले से तय था सो इस बात से मन को दुखी
करने का कोई औचित्य नहीं है। तुमने जो इतने वर्षों के अथक परिश्रम से पाया उसे अब बाँटने
का समय आया है। और विश्वास करो कुछ बाँटने में जो आनंद है वैसा आनंद और कहीं नहीं।
मैं कभी नहीं चाहूँगा की तुम इस नये जीवन में उदास मन से प्रवेश करो। कुछ विशेष है
आप सब में और एक बड़ा दायित्व आप सभी के कंधों पर है। इस गौरव और इस आनंद को अनुभव
करके देखो, अच्छा लगेगा
।”
शौर्य उस किनारे पर आ गये थे जहाँ से झरने का प्रवाह और उपर
से गिरते हुए पानी का पूरा फैलाव साफ दिखाई दे रहा था। गिरते हुए पानी से हल्की ओस
उठ रही थी, दूर पहाड़ी के पीछे से सूर्य ने आकाश पर कदम रख दिए थे, मखमली धूप घाटी के दोनों ओर वृक्षों पर बिछ गई थी। यह प्रकृति का एक बहुत
ही अद्भुत दृश्य था और भोर में पक्षियों के शोर ने इस दृश्य
में संगीत सा भर दिया था। शौर्य ने अपने दोनों हाथों को इस प्रकार से फैलाया जैसे कि वो सूर्य की पूरी रोशनी को समेट रहे हों। उनके
चेहरे पर एक आनंद से परिपूर्ण मुस्कुराहट उभर आई थी।
“आओ और मेरे साथ इस अहसास को स्पर्श करके देखो, क्योंकि
हर सवेरा नया और सदा की भाँति ऊर्जावान होता है।” शौर्य
ने आँखें बंद कर के कहा।
शौर्य की बात का अनुसरण करते हुए सभी शौर्य के दोनों ओर उस
की मुद्रा में खड़े हो गये थे। यह एक बहुत ही जीवंत और स्वस्थ अहसास था, यह
उनके चेहरों पर आए उस तेज से प्रतीत हो रहा था। सच में आज कुछ नया लग रहा था उन
सभी को, एक नई उमंग उन सभी के चेहरों पर खिल गई थी।
कुछ पलो के बाद शौर्य ने अपने हाथों को नीचे किया। “अब समझ में
आया कि आने वाली सुबह भी बिल्कुल ऐसी ही होगी?” उस नये
मनोबल के साथ सब के चेहरों पर मुस्कुराहट तैर रही थी।
“हाँ गुरु जी, हमें समझ में आ गया।” विधुत ने कहा तो बाकी सब ने भी उसके साथ हाँ में सर हिलाते हुए अपना
समर्थन दिया।
“और आप लोग यह क्यों भूलते हैं कि आप लोगों की यह मित्रता और एक दूसरे का
साथ तो सदैव यूँ ही रहेगा, ऐसे मित्र तो भाग्य से मिलते
हैं।” शौर्य की बात पर सभी एक दूसरे को देखने लगे, सब के चेहरे पर अब उल्लास दिख रहा था जो शौर्य की
बातों का ही प्रभाव था।”
“आप सही कह रहे हैं गुरु जी, हम समझ गये।” वेग ने कहा।
“हाँ, अब ठीक है। तुम लोगों का उदास होना मुझे
बिल्कुल भी पसंद नहीं है।” शौर्य वापस आश्रम की ओर मुड़
गये थे। “अच्छा अब कुछ और भी ऐसा है जो आप लोगों को
मालूम होना चाहिए। आप ही में से किसी एक को अब वह दायित्व भी संभालना होगा जो कि
अभी तक मैंने उठा रखा था। महान गुरु "दक्ष" ने जो
दायित्व मुझे दिया था वही अब मुझे आगे किसी के हाथों में सौंपना है। यह परन्तु अभी
तक हमने निश्चित नहीं किया है कि आप लोगों में से वह कौन होगा। एक शिक्षक होने के
नाते मुझे आप सभी पर बहुत गर्व है कि मैंने आप लोगों को चुना। आप सभी ने पूरी
निष्ठा और कठिन परिश्रम के साथ अपनी शिक्षा पूरी की है परन्तु…” गुरु शौर्य कुछ देर के लिए चुप होकर सभी को देखने लगे।
“परन्तु
अब यहाँ आप में से किसी एक को इस विशेष दायित्व के लिए तैयार होना होगा। आप मे से वह
कौन होगा यह मैं अपने साथियों से सलाह करके जल्दी ही घोषणा कर दूँगा। परंतु इस चुनाव का इतना महत्व क्यों है यह मैं आप लोगों को अवश्य बताना
चाहूँगा।” वह थोड़ा रुके यहाँ पर और फिर कहना प्रारम्भ
किया। “आप लोग हर प्रकार से
योग्य और संपूर्ण हैं, आप लोगों में तुलना करने का कोई
आधार नहीं है और मेरे लिए आप सभी एक समान हैं। परन्तु इसके बनिस्बत अब आप में से
किसी एक को ही आगे नेतृत्व का भार उठाना है। हमारी शक्ति को
संगठित रखने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि नेतृत्व किसी एक के हाथ में हो। नेतृत्व
होने से एक तो शक्ति का कभी बिखराव नहीं होता दूसरा इससे हम लक्ष्य के प्रति भ्रमित
नहीं होते। और यह इसलिए भी बहुत आवश्यक है क्योंकि इसके बिना आप लोगों को बहुत से निर्णय
लेने में कठिनाई हो सकती है। परन्तु हाँ, इससे नेतृत्व करने वाले का उत्तरदायित्व कहीं
अधिक बढ़ जाता है क्योंकि उसके हर एक उचित या अनुचित कदम का प्रभाव बाकी सब पर भी बराबर
पड़ेगा। कठिन परिस्थितियों में उसे अपने साथियों का मार्गदर्शन भी करना होगा और उन्हें
हर संकट से सुरक्षित रखना भी उसी का दायित्व होगा।”
शौर्य फिर थोड़ा रुके और कहना प्रारम्भ किया। “हाँ, चूँकि अब जब भार
बढ़ेगा तो उस भार को संभालने के लिए एक अतिरिक्त शक्ति भी उसे मुझसे प्राप्त होगी।”
यहाँ पर सब के चेहरे पर एक उत्सुकता उभर आई थी। “लेकिन यह शक्ति भी स्वयं में एक बड़ा
दायित्व है। यह उपयोगी तो है लेकिन इसको सुरक्षित रखना भी एक चुनौती है।"
“क्या है यह शक्ति गुरु जी?” मेघ से रहा नहीं
गया तो उसने पूछ लिया परन्तु बाकी सब की आँखों में
भी यही प्रश्न था।
बहुत
जल्दी तुम्हे इस शक्ति और इसके उपयोग दोनों के बारे में मैं सब कुछ बता दूँगा। अभी
इतना जान लो कि इसी शक्ति के फलस्वरूप से हमने और हम से भी पहले भी तपोवनियों ने कई
बार संभावित परिणामो को बदल दिया था। प्रभावशाली होने के साथ यह निश्चित ही घातक भी
है, इसका वरण करने के लिए धारक को हर प्रकार से सक्षम होना आवश्यक है। अगर यह शक्ति
अनुचित हाथों में चले जाए तो इसका दुरुपयोग भी हो सकता है। संभावना परन्तु इसकी बहुत
थोड़ी है।”
“ऐसा क्यों गुरु जी?” इस बार विधुत ने पूछा।
“क्योंकि कोई साधारण मनुष्य तो इसे धारण कर ही नहीं सकता, ऐसा करने का प्रयास भी उसके प्राण ले सकता है। किसी साधारण
मनुष्य का शरीर इस शक्ति को एक क्षण भी सहन नहीं कर सकता है।” शौर्य का जवाब विधुत को अधिक संतुष्ट नहीं कर पाया तो शौर्य उसके पास आकर
बोले।
“विधुत, इस शक्ति को केवल एक शक्तिशाली
शरीर ही धारण कर सकता है। जैसे अंतिम सीढ़ी तक पहुँचने के लिए पहले पहली सीढ़ी से आरंभ करना
होता है ठीक वैसे ही इस शक्ति को नियंत्रित करने के लिए जो
मापदंड निर्धारित हैं या जिन शक्तिशाली तत्वों की उपस्थिति का शरीर में होना आवश्यक है वो सब केवल आप लोगों ने इस शिक्षा में अर्जित किए हैं। एक तपोवनी का शरीर ही बस इस शक्ति को धारण कर सकता
है और नियंत्रण में रख सकता है। ” विधुत के साथ बाकी सब भी शौर्य की बात को ध्यान से सुन रहे थे।
“अभी इस विषय पर अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं है, जितना सोचोगे उतने ही प्रश्न
निकलेंगे, समय आने पर आपको सब ज्ञात हो जाएगा।” शौर्य की बात पर सब ने सहमति
प्रकट की थी।
“तो फिर अब आप लोग अपनी प्रसन्नता का आनंद उठाइए और मुझे जाने दीजिए।” यह कहकर
शौर्य वहाँ से चले गये।
“क्या हुआ प्रताप तुम्हारा चेहरा क्यों मुरझा गया है? अभी तक तो बड़े खिले-खिले दिखाई दे रहे थे।” शौर्य
के जाने के बाद वेग ने प्रताप से पूछा।
“कुछ भी तो नहीं वेग, मुझे भला क्या होगा? मैं एकदम ठीक हूँ, बल्कि मैं तो कबसे इस
दिन की प्रतीक्षा कर रहा था। इस दुनिया से मिलने की चाह तो जाने कबसे मेरे मन में थी।” प्रताप ने कहा।
“परंतु
तुम्हारा चेहरा तो कुछ और ही कह रहा था।” मेघ ने कहा।
“वो यह जानकर कि तुमसे पीछा कभी नहीं छूटेगा, तुम्हे आगे भी सदा झेलना पड़ेगा।” प्रताप ने मुंह बनाते हुए कहा।
“तुम मुझे झेलते हो? हा हा हा... हम सब तुम्हें झेलते हैं, समझे।” मेघ ने कहा।
“कुछ भी बोलो, मेरे बिना तुम लोग कुछ भी नहीं हो।”
“यह
तुम्हारा भ्रम है।” मेघ ने कहा।
“चला जाऊँगा किसी दिन तो समझ आएगा तुम्हे कि मेरा तुम सब के
बीच क्या महत्व है?”
“जाने तो हम तुम्हें कभी देंगे नहीं।” इस बार
विधुत ने कहा।
“वो क्यों भला?”
“तुम्हें झेलने की आदत जो पड़ गई है अब।” मेघ की इस बात
पर सब के चेहरों पर एक बार हँसी आ गई परन्तु दुष्यंत शायद कुछ सुन ही नहीं पाया था, वह बस अपने में ही कुछ सोच रहा था। सब ने अचानक
इस बात को महसूस किया।
“कहाँ खोए हो दुष्यंत?” वेग ने उसके कंधे पर हाथ
रख कर कहा तो वह जैसे नींद से जागा।
“हाँ... कहीं भी तो नहीं,” वह बोला। “बस गुरु जी ने जो कहा वही सोच रहा था।”
“छोड़ो भी अब उस बात को, यह तो एक नया आरंभ है और शीघ्र ही हम इसके
आदि भी हो जाएँगे, मुझे विश्वास है।”
“हाँ तुम सही कह रहे हो।” कहते हुए सभी आश्रम की
बढ़ गये।
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