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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

युगान्धर-भूमि ग्रहण की दस्तक महारथी विराट 1/5 “ प्रणाम महारथी विराट ।”  वेग ने कक्ष में प्रवेश करते के साथ ही कहा तो विर...

अध्याय 3 - अपहरण



युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक


अपहरण




निशिकन्ड़क नगर, त्रिशला राष्ट्र की पश्चिमी सीमा के निकट यह नगर व्यापार के दृष्टि से बहुत अच्छा स्थान है। अनुकूल भौगोलिक परिस्थिति, समुद्र तट का किनारा और सुगम रास्तों के कारण से यह कई देशों के लिए व्यापार का एक केंद्र है। आस पास के छोटे कस्बे भी अपनी आवश्यकताओं के लिए इसी नगर पर निर्भर रहते हैं। यहाँ का हाट सदा भीड़ से भरा रहता है। भीड़ में ही आज कुछ सिपाही भी शामिल थे और उन सभी की दृष्टि कुछ महिलाओं पर थी जो उन सिपाहियों की मंशा से अंजान अपने काम में व्यस्त थी। और हाट के बाहर…।
श्रीमान, अपना काम कीजिए परन्तु सावधानी सेभीड़ में मुझे किसी प्रकार का बवाल नहीं चाहिए।” निशिकन्ड़क का नगरपाल था यह, जो थोड़ा सा चिंतित भी था
आप निश्चिंत रहिए महोदयहम यहाँ उसे छूएंगे भी नहीं।” उस सेना नायक ने आश्वासन दिया जो शायद त्रिशला राष्ट्र का नहीं था
और हाँ, काम पूरा करके आप त्रिशला राष्ट्र की सीमा से शीघ्र ही बाहर भी हो जाइए। किसी ने आप लोगों को पहचान लिया तो मेरी नौकरी संकट में पड़ जाएगी।”
ऐसा ही होगा, हम आपको किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होने देंगे। आप राशी गिन लीजिए कहीं कम तो नहीं है?”
“जोखिम को देखते हुए तो कम ही है।”
“भरोशा रखिए, अगर इनमें से कोई हमारे काम की निकली तो जितना आपने सोचा नहीं उससे भी कहीं अधिक मिलेगा आपको।” कहकर वह अधिकारी अपने सिपाही की ओर मुड़ा। कितनी हैं?”
“छः या सात हैं श्रीमान।” सिपाही ने उत्तर दिया
“कोई संदेह उन्हे अभी तक?”
“नहीं श्रीमान, थोड़ा भी नहीं।”
बहुत बढ़िया।” वह सेना नायक उस नगरपाल की ओर मुड़ा। “श्रीमान, सब कुछ हमारी योजना के अनुसार चल रहा हैआप निश्चिंत हो जाइए। आप बस उसका ध्यान रखना जो मैंने आपसे कहा था।”
मुझे संकेत दे दीजिएगामेरे सिपाही तैयार हैं।”
“धन्यवाद श्रीमान।” कहकर वह अपने सिपाहियों की ओर बढ़ गया जो कुछ दूर खड़े थे। “अवसर हाथ से जाना नहीं चाहिए,” अब वह सब को समझा रहा था। “जैसे ही कोई एक बाकियों से अलग हो तुरंत दबोच लेना हैपरन्तु बाकियों को थोड़ा भी पता नहीं चलना चाहिए अन्यथा वो छः- सात होकर भी हम पर भारी पड़ सकती हैं समझ गये?” सभी ने हाँ में सर हिलाया
जब्बार कहाँ है?” सेना नायक ने पूछा
मैं यहाँ हूँ श्रीमान।” जब्बार बोला जो अभी वहाँ पहुँचा था
...फो... तुम कहीं से भी भिखारी प्रतीत नहीं हो रहे हो, भिखारियों के वस्त्र इतने साफ सुथरे नहीं होते मूर्ख। देखने से ही लग रहा है कि तुमने जानबूझकर इन्हें फाड़ा है।”
मुझे यहाँ पुराने वस्त्र कहीं नहीं मिले श्रीमान।”
तो नंगे भिखारी बन जाना था, उतारो इसके वस्त्र।” सेना नायक ने झुंझलाकर दूसरे सिपाहियों से कहा। “और इसको जितना भद्दा और कुरूप बना सकते हो बनाओ।”
चलो।” सिपाहियों को थोड़ी हँसी आ गईवो उसे अपने साथ ले गये
थोड़ी देर में एक और सिपाही दौड़ कर वहाँ पहुँचा। “श्रीमान, वो आ रही हैं।
तैयार हो जाओ सभी, अपना-अपना स्थान ले लो।” कहने के साथ सभी फुर्ती से गति में आ गये। “तुम लोग मेरे संकेत की प्रतीक्षा करना, मेरा संकेत मिलते ही उसे उठा लेना।” चार-पाँच सिपाहियों को वह सेना नायक अलग से निर्देश दे रहा था जो कि आम नागरिकों के भेस में थे
कुछ देर में ही वो महिलाएँ वहाँ आती हुई दिखाई देने लगी थी, रास्ते पर थोड़े कम ही लोग थे क्योंकि नगरपाल ने वह रास्ता कुछ देर के लिए बंद करवा दिया था ताकि उसके इन मित्रों को अपना उद्देश्य पूरा करने में आसानी हो। उस भिखारी बने सिपाही ने भी रास्ते पर आकर अपना स्थान ले लिया था, उसके अधनंगे शरीर से आती दुर्गंध से पता चल रहा था कि उसे किसी तबेले में ले जाकर तैयार किया गया था। महिलाओं के कुछ आगे आने पर एक हाथ गाड़ी वाला व्यक्ति भी उनके पीछे कुछ अंतराल पर चलने लगा। सभी महिलाओं के हाथों में कुछ ना कुछ सामान था जिसे वो वहाँ खड़ी एक बग्घी की ओर लेकर जा रही थी। वो सभी उस भिखारी के सामने से होकर निकली परन्तु जैसे ही सबसे पीछे वाली महिला उसके पास पहुँचीवह एकाएक उसके सामने आ गया। उसके यूँ सामने आ जाने से और उस दुर्गंध से जो उसके शरीर से आ रही थीउस महिला को रुक जाना पड़ा। वह एक कदम पीछे हट गई
माई, खाने को कुछ दे दो… दो दिन से भूखा हूँ माई…” वो दुर्बलता से लड़खड़ाने का अभिनय कर रहा था
हाँ, हाँ... दूर रहो बाबा... मेरे पास कुछ नहीं है अभी खाने को।” वह पीछे हटते हुए बोली
माई, कुछ दे दो… भगवान तुम्हें सुखी रखेगा।” उसने रास्ता बदलने का प्रयास किया परन्तु वह बार-बार उसके सामने आ जा रहा था
मेरे पास कुछ नहीं है… सच…” वह उसको पार नहीं कर पा रही थी। “विभा...” उसने आगे जा चुकी अन्य महिलाओं को सहयता के लिए पुकारा, विभा ने पलट कर देखा ही था कि तभी सामने से कुछ शोर सुनाई देने लगाठीक वहाँ से जहाँ उनकी बग्घी खड़ी हुई थी।
अरे बाबा, तुम किसी और से क्यों नहीं मांगतेकहा ना मेरे पास कुछ नहीं है।” उसे अब गुस्सा आने लगा था। “मेरा रास्ता छोड़ोजाने दो मुझे।”
दूसरी ओर, बग्घी के पास एकाएक उठे उस शोर के कारण को समझने के लिए सभी घटनास्थल की ओर देखने लगे। ठीक इसी समय उस सेना नायक का संकेत पाकर साधारण वेश वाले सिपाही उस अकेली महिला की ओर बढ़े। भिखारी से उलझी वह महिला अपने पीछे आ चुके उन तीन सिपाहियों से बिल्कुल अंजान थी। अचानक दो सिपाहियों ने उसकी बाजुओं को मजबूती से पकड़ लिया। वह कुछ समझ पाती उससे पहले ही तीसरे सिपाही ने उसके चेहरे पर कोई वस्त्र लगाकर उसका नाक मुंह बंद कर दिया। उस वस्त्र में कुछ ऐसा था जिससे वह एक क्षण में मूर्छित हो गई
दूसरी ओरवहाँ वह किसी के झगड़ने का शोर था। जो कुछ राहगीर वहाँ मौजूद थे वो भी दौड़कर वहाँ जा चुके थे। ऐसे में उस भिखारी और उस महिला पर किसी की दृष्टि नहीं थी। सही समय पर वह हाथ गाड़ी वाला व्यक्ति उनके पास पहुँच गयासिपाहियों ने इधर उधर देखा और जल्दी से उस महिला को उसके समान के साथ उस हाथ गाड़ी में डाल दिया। भिखारी ने भी इस पर्यन्त गाड़ी में पहले से रखा साफ कुरता और एक पगड़ी पहन ली। उस महिला को वस्त्र से ढक कर वह व्यक्ति अपनी राह चलने लगा और बाकी सिपाही उस दिशा की ओर दौड़ कर गये जहाँ बाकी राहगीर चले गये थे
भीड़ के पीछे वो महिलाएँ जब तक वहाँ पहुँची जहाँ शोर प्रारम्भ हुआ था, तब तक झगड़ा समाप्त हो चुका था क्योंकि नगरपाल के आदेश पर उन दो लोगों को हिरासत में ले लिया गया था जो वहाँ उत्पात मचा रहे थे।
पीछे हटो सभी… सब ठीक हैकुछ नहीं हुआ।” भीड़ को हटाने के लिए सिपाही यह कहते हुए आगे बढ़े
विभा को याद आया की उनकी एक साथिन पीछे रह गई हैउसने पीछे मुड़ के देखा परन्तु वहाँ खुला रास्ता था जिसपर कोई नहीं था। उसने चारों दिशा में दृष्टि दौड़ाई परन्तु वह उसे दिखी नहीं। नगरपाल देख रहा था उस मूर्छित महिला को जिसे वो लोग सब के बगल से लेकर जा रहे थे, उसका हृदय धड़कने लगा क्योंकि अब बाकी महिलाओं को भी उनकी एक साथिन के लापता होने का भान होने लगा था
कहाँ गई सुगंधिकाअभी-अभी तो यहीं थी।” विभा ने चौंक कर कहा
आश्चर्य का कारण यह भी था कि अधिकाधिक चालीस कदम चलने के समय मात्र में वह वहाँ से नदारद थीजबकि वापस पीछे दो सौ कदमों की दूरी तक गिनती के दो चार लोग दिखाई दे रहे थे और सुगंधिका वहाँ उनमें नहीं थी
वह हमारे पीछे नहीं थी क्या?” एक दूसरी महिला ने पूछा
बिल्कुल हमारे पीछे थी। अभी दो क्षण पहले उस भिखारी के पास… अरे वह भिखारी...” वह दुबारा चौंक गई। “वह भिखारी भी तो नहीं है यहाँ।”
तुम घबरा क्यों रही होयहीं कहीं चली गई होगी।”
“इतनी शीघ्रता से?”
तुम्हें पता हैहम जा सकती हैं कहीं भी, इतनी शीघ्रता से।”
यूँ सब के बीच में से नहीं परन्तु… और वह भिखारीवह कहाँ गया?” विभा ने पूछा
तमाशा देखने वालों के साथ चला गया होगाहमारा ध्यान भी तो यहाँ नहीं था।”
तमाशा देखने वालों में वह भिखारी नहीं है। वह मरियल भी इतनी जल्दी कहीं भाग गयाहैं ना?”
तो तुम कहना चाहती हो कि दो क्षण में धरती फटी और सुगंधिका उस भिखारी को गोद में लेकर उसमें कूद गईउसके बाद धरती फिर से वैसे ही हो गई?
नहीं, परन्तु...”
चलो सभीवह पहुँच जाएगी।” वह दूसरी महिला यह कहते हुए आगे बढ़ गई।
मगर...” विभा ने कुछ कहना चाहा परन्तु उसे अनसुना कर सब चल दी वहाँ से
विभा जानती थी कि धरती उसे नहीं निगली है परन्तु बाकियों की सोच को झुठलाने के लिए उसके पास कोई उत्तर भी नहीं था। उसकी दृष्टि अब भी चारों ओर घूम रही थी किसी उत्तर के लिए। दूर जाते हुए उस हाथ गाड़ी वाले व्यक्ति को विभा ने देखा था परन्तु उसमें उसे थोड़ा भी कुछ असामान्य नहीं लगा था
चलो अब, वह आ जाएगी उसकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।” बाकी सब निश्चिंत होकर रथ तक पहुँच गई थी और अपना सामान उसमें रखने लगी थीविभा भी सर खुजलाते हुए उनके पीछे चल दी
बिना किसी को संदेह हुए यहाँ एक महिला का अपहरण हो चुका था। उस गाड़ी वाले के आँखो से ओझल होने के पश्चात ही नगरपाल और उस अधिकारी के हृदयों की गति सामान्य हो पाई थी। एक दूसरे को आँखो ही आँखो में बधाई दे रहे थे दोनों

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