रुपसी
अपनी कंठ माला के खो जाने से वेग अभी तक उदास था, किसी
को बिना कहे वह आश्रम से थोड़े दूर एकांत में जा बैठा था। अनायास ही उसकी गर्दन उपर उठी तो उसे आकाश
से कुछ नीचे आता हुआ सा प्रतीत हुआ। वह जो कुछ भी था आश्चर्य में डालने वाला था। दूर से वह कुछ ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई बड़ा सा घायल पक्षी फड़फड़ाता हुआ सा धरती की ओर आ रहा हो। देखते ही देखते घने पेड़ों के झुरमुट में वह पक्षी अदृश्य हो गया। यह दृश्य किसी भी मनुष्य के लिए
आश्चर्य का विषय हो सकता था। वेग अभी भी यह समझने का
प्रयास कर रहा था कि वह पक्षी जैसी दिखने
वाली वस्तु क्या थी?
अपने सवाल का जवाब पाने के लिए वेग उसी दिशा की और चल पड़ा
जहाँ वह पक्षी गिरा था। थोड़ी देर में वेग लगभग उस स्थान के समीप पहुँच चुका था। सावधानी के लिए उसने
अपना शस्त्र अपने हाथ में ले लिया था और दबे पाँव
वह उस स्थान का निरीक्षण करने लगा। वेग ने
चारों ओर अपनी दृष्टि दौड़ा कर देखी परंतु उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया।
वेग बिना आवाज किए एकदम शांत होकर उस अंजान कोतुहल के विषय को खोजने का प्रयास कर रहा था कि तभी उसे कुछ ध्वनि का सा आभास हुआ। कुछ ऐसा जैसे सूखे पत्तों
पर किसी के चलने से उत्पन्न हुई चरमराहट हो, यह बहुत ही धीमे थी परंतु पास होने के
कारण सुनी जा सकती थी। वेग थोड़ा सतर्क हो गया और आवाज
की दिशा में धीरे से आगे बढ़ा। वह आवाज सामने के कुछ पत्थरों के पीछे से आती हुई सी प्रतीत हो रही थी।
पत्थरों के पार देखते ही वेग को रुक जाना पड़ा। सामने का दृश्य अचंभित कर देने
वाला था क्योंकि वेग की कल्पना से परे वहाँ एक घायल लड़की दिखाई
दे रही थी। उसकी पीठ वेग की ओर थी, उसके कंधे में एक तीर धंसा था जहाँ
से रक्त बह रहा था। वह अपने आप को संभालने का प्रयास कर
रही थी परंतु वह इसमें अधिक सफल नहीं हो पा रही थी। वेग
अभी कुछ कदमों के अंतराल पर ही खड़ा था।
“यह कैसे हो सकता है? आकाश से जिसे गिरते हुए देखा वह क्या
यह लड़की थी? नहीं, नहीं यह कैसे हो
सकता है यह तो एक मनुष्य है और वह तो…” वेग कुछ ऐसा ही
सोच रहा था परंतु अपने सवालों को विराम लगा के उसने महसूस किया कि वह अंजान लड़की
घायल है और इस नाते उसका सबसे पहला कर्तव्य उसकी सहायता करना है। यह सोच के उसने अपने कदम आगे बढ़ाए परन्तु इस बार उसके कदमों की आहट ने उस
लड़की को सतर्क कर दिया। उस अंजान लड़की ने वेग की ओर पलट कर देखा।
उसके पलटने के साथ ही वेग अपने स्थान पर
जड़ सा खड़ा हो गया। वह उसे एकटक देखे जा रहा था, उसकी
सुंदरता अद्भुत थी जिसे देखकर वेग कुछ क्षण के लिए स्तब्ध सा हो गया था। उसकी नींद
शायद इतनी जल्दी नहीं टूटती अगर वह अंजान लड़की उसे पीछे हटने की चेतावनी नहीं
देती।
“मेरे निकट आने का प्रयास मत करना।” उसने किसी घायल शेरनी की भाँति गुर्रा कर
कहा। उसकी आँखें क्रोध से लाल हो रही थी, क्रोध और पीड़ा के मिले जुले से भाव उसके
चेहरे पर आ रहे थे।
वेग को इस प्रकार के बर्ताव की आशा बिल्कुल
नहीं थी जिससे वह थोड़ा अचंभित सा हुआ। “मैं…मैं तो तुम्हारी सहायता…” वेग ने आगे बढ़ना
चाहा परंतु उसे फिर से रुक जाना पड़ा।
“मैंने कहा मेरे पास आने का साहस मत करना।” इस बार उस लड़की ने अपनी कमर से लगा छुरा निकाल
लिया था, छुरे को वेग की ओर
घुमाकर उसने वेग को चेतावनी देते हुए कहा। वह खड़ी हो चुकी थी परंतु लड़खड़ाते हुए, अपने कदमों को वह स्थिर नहीं कर पा
रही थी।”
“ओ…ओ…मुझे लगता है कि तुम मुझे
कुछ और समझ रही हो, ये देखो मैंने अपना हथियार फेंक
दिया है।” कहकर वेग ने अपनी तलवार नीचे गिरा दी और अपने
कदम पीछे कर लिए। “अब ठीक है? तुम
घायल हो और तुम्हें इस समय सहायता की आवश्यकता है... तुम समझ रही हो ना मैं क्या
कह रहा हूँ?”
“मुझे अपनी बातों में उलझाने का व्यर्थ
प्रयास मत करो, मुझे तुम्हारी किसी सहायता की आवश्यकता
नहीं है। मैं अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकती हूँ, तुम जहाँ से आए हो वापस लौट जाओ।” वह लड़की अभी भी क्रोधित दिखाई दे रही थी।
“मैं तुमको इस हालत में छोड़ के कैसे जा सकता हूँ? यहाँ इस जंगल में तुम अकेली लड़की, वो भी इस
हालत में, कैसे तुम अपनी रक्षा करोगी?” वेग उसे समझाने का प्रयत्न कर रहा था। “विश्वास करो मैं तुम्हारी
सहायता करना चाहता हूँ।”
“मैं तुम्हारे जाल में फँसने वाली नहीं हूँ।”
“कैसा जाल? मैं कोई शिकारी नहीं और ना ही तुम
मेरा कोई शिकार हो।” वेग उसके अविश्वास से चिड़ सा गया
था। “ना जाने क्यों परंतु तुम मुझ पर भरोसा ना करके
भूल कर रही हो और यह तुम्हारे लिए घातक हो सकता है। तुम्हारा बहुत सा रक्त पहले ही
बह चुका है और...” वह कुछ और कहता परंतु
कुछ आवाजों ने उसे और उस लड़की, दोनों को चौंका दिया।
“आ गये तुम्हारे साथी, तुम्हारी चाल सफल रही। मुझे बातों में उलझा के अपने साथियों की प्रतीक्षा कर रहे थे?”
“ओहो… तुम क्या कह कर रही हो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा और मैं नहीं जानता कि कौन आ रहा है?” वेग चिड़ के उस दिशा में
देखने लगा जिस दिशा से आवाज आ रही थी तभी उसे कुछ विचार आया। “ठहरो, ठहरो...
अब शायद मैं समझ रहा हूँ। क्या
तुम्हारी इस हालत के उत्तरदायी ये लोग हैं? और तुम मुझे भी इनका साथी समझ रही हो, मैं सही
हूँ ना?
लड़की ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि अब वह भी
नहीं जानती थी कि यह अंजान व्यक्ति मित्र है कि शत्रु।
“अगर तुम्हें आपत्ति ना हो तो क्या मैं
अपना शस्त्र उठा सकता हूँ?” लड़की की ओर से कोई जवाब नहीं था तो वेग
ने अपना शस्त्र उठा लिया और आवाज की दिशा में
देखने लगा। आवाजें और समीप आ चुकी थी।
“अगर तुम उनके साथी नहीं हो तो फिर यहाँ क्यों रुके हो? भाग जाओ और अपने
प्राण बचाओ।” इस बार उस लड़की की बातों में विनम्रता थी।
“मेरी चिंता करने के लिए धन्यवाद परंतु
यहाँ जो कुछ भी हुआ है, वो क्यों हुआ है? यह मुझे अब जानना ही होगा…”
इसी के साथ जंगल में से कुछ दस-बारह की
संख्या में सैनिक निकल के सामने आ गये।
“हा हा हा…मिल गयी... अब
कहाँ जाओगी बच के?” उनमें से एक हंसा।
“श्रीमान, हमारा पुरस्कार तो पक्का हो गया।” दूसरा बोला।
बाकी के सभी सैनिक घेरा सा बनाने लगे, वह हँसने
वाला व्यक्ति जो उनका नायक प्रतीत हो रहा था, उस स्थान पर वेग की भूमिका को समझने का प्रयत्न कर
रहा था।
“तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो? कहीं इस
चुड़ैल के हिमायती तो बनकर नहीं आए हो ना? हा हा हा…” उसकी इस बात पर उसके बाकी के साथी भी हँसने लगे।
“तुम जो कोई भी हो यहाँ से जल्दी से भाग जाओ, अभी।” उस व्यक्ति ने वेग को डरा के भगाना चाहा।
वेग
ने उन सभी को ध्यान से देखा और फिर कहना प्रारम्भ किया। “तुम जो कोई भी हो,
तुम्हारी बातों से तुम कोई सज्जन लोग तो
प्रतीत नहीं होते हो। मेरा पहला प्रश्न यही होता कि
क्या इस लड़की को तुमने ही घायल किया है सो उसका जवाब मुझे मिल चुका है। अब मेरा दूसरा प्रश्न यह है कि तुमने इस लड़की को घायल क्यों किया है? क्या यह कोई अपराधी है?”
“हा हा हा...” सभी ठहाका मार कर हँसने लगे।
“इसका
साहस तो देखो इथार के एक सेना नायक से, तारकेन्दु से यह जवाब मांग रहा है।” उस व्यक्ति
ने अपने बाकी के साथियों की ओर देखते हुए कहा।
“लगता है कि आज इसका भी भाग्य कुछ ठीक नहीं है, इस
चुड़ैल के फेरे में यह अपने प्राण से हाथ धो बैठेगा।”
“मुझे अपने दूसरे प्रश्न का भी जवाब मिल चुका है, अब तुम…”
वेग कुछ और बोलता उसके पहले ही वह लड़की बीच में बोल पड़ी। “कायरों की भाँति झुंड बनाकर हमला करके बहादुरी का डंका बजाते हो, साहस है तो आगे बढ़ो और छू के दिखाओ मुझे।” उसने
अपना छुरे वाला हाथ बचाव की मुद्रा में कर लिया था।
“जिव्हा पर काबू रख चुड़ैल और अपने आप को सीधे-सीधे मेरे हवाले कर
दो अन्यथा रस्सी से बाँधकर तुझे घसीट कर ले चलूँगा।” उसने गरजते हुए कहा। “पकड़ लो इस चुड़ैल को और
बाँधकर डाल दो अश्व पर।” उसने सैनिकों को आदेश
दिया। “और उसके बाद इस दो कौड़ी के ग्वाले की जिव्हा काट के इसके हाथ में दे
दो।”
आदेश मिलते ही लड़की को पकड़ने के लिए दो सैनिक आगे बढ़े
परंतु वह लड़की अभी भी समर्पण करने को तैयार नहीं दिख रही थी।
“तुमसे मैंने कहा था यहाँ से चले जाओ, तुमने अकारण अपने प्राण जोखिम
में डाल दिए हैं।” लड़की
ने खेद प्रकट करते हुए कहा था।
लड़की की ओर बढ़ते हुए सैनिक उसको छू पाते उस से पहले ही वेग उनके बीच में आ गया और बिना चेतावनी दिए ही दोनों को हवा में
उछाल कर अलग-अलग दिशाओं में फेंक दिया। दोनों मुंह के
बल जा गिरे। दोनों का यह हाल देखकर तारकेन्दु के साथ वह
लड़की भी आश्चर्यचकित थी। अब वेग ठीक लड़की के सामने
उसकी ढाल बन के खड़ा हो गया था।
“किसी और को भी प्रयास कर के देखना है?” वेग ने फिर उन्हें ललकारा।
“देख क्या रहे हो समाप्त कर दो इसे।” तारकेन्दु गुस्से से चीखा और उसके
आदेश के साथ ही सभी सैनिक वेग की ओर दौड़ पड़े इस बात से अंजान कि वो किस से टकरा
रहे हैं?
वेग भी सामना करने के लिए तैयार हो गया था। इसी
क्षण आगे वाले दो सैनिकों ने वेग पर एक साथ वार कर दिया परंतु उनसे
कहीं अधिक फुर्ती से वेग ने उनकी तलवारों पर एक ही प्रहार किया
और उसके साथ ही दोनों के हाथों से उनके शस्त्र छूट
कर नीचे गिर पड़े। उन्हें देखने से ऐसा लग रहा था जैसे
उनके हाथों में बिजली का झटका लग गया था, उन्हें अपने
हाथ झनझनाते हुए से महसूस हो रहे थे। दोनों ने एक दूसरे
को देखा और पीछे हटना उचित समझा। दो सैनिक अभी भी उठने
का प्रयास कर रहे थे और अब इन दोनों का यह हाल देखकर बाकी के सैनिकों की हिम्मत
कमजोर होने लगी थी परंतु तारकेन्दु के आदेश का पालन करने के लिए उनको आगे आना
पड़ा। फिर भी अब वेग के समीप जाकर उसपर हमला करने का साहस किसी का नहीं हो पा रहा
था।
“आगे
बढ़ो नालायकों और काट डालो इसे, एक साधारण मनुष्य से अधिक कुछ नहीं है ये।”
तारकेन्दु उनके उपर दुबारा चिल्लाया परंतु उनके चेहरों पर भय स्पष्ट झलक रहा था
जिसे वेग ने भी भाँप लिया था।
“सैनिक
हो ना तुम लोग, किसी लाचार पर अत्याचार करते हुए लाज आनी चाहिए तुम लोगों को। किसी
की पीड़ा पर तुम लोगों को हँसी आती है। क्या यही तुम्हारा सैनिक धर्म तुम्हे सिखलता
है? वेग ने आगे बढ़ते हुए कहा जिसके साथ ही सभी ने अपने कदम पीछे कर लिए।
“हो
सकता है कि तुम किसी आदेश का पालन कर रहे थे परंतु इसके बावजूद तुम्हारा आचरण और
तरीका दोनों अशोभनीय थे। एक शत्रु से भी इस प्रकार का व्यवहार अनुचित है जो तुम लोगों
ने अभी किया है। तुम लोगों ने भूल तो की है परंतु फिर भी मैं तुम लोगों को एक अवसर
दे सकता हूँ, अकारण तुम्हें चोट पहुँचा के मुझे भी बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा।” यह
कहकर वेग थोड़ा रुका, यह उसके शब्दों का चमत्कार था या उसका भय, सभी ने अपने
शस्त्र नीचे कर लिए।
“आगे
बढ़ो और सर झुका कर अपने कृत्य के लिए क्षमा माँगो पहले। कान पकड़ कर प्रण लो कि दुबारा
किसी के साथ ऐसा आचरण नहीं करोगे और अगर यह तुम्हें क्षमा कर दें तो मैं
तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा, यह मेरा वचन है। उसके बाद तुम यहाँ से जा
सकते हो।” सब ने एक दूसरे की आँखों में देखा और
तुरंत अपने शस्त्र नीचे डाल दिए, वो सभी दौड़ कर गये और
उस लड़की सामने झुक गये जो अभी तक हतप्रभ सी खड़ी होकर सब कुछ देख रही थी।
अब
बारी तारकेन्दु की थी, वेग उसकी ओर पलटा। “परंतु तुम्हारा
अपराध क्षमा योग्य नहीं है।” अपने सिपाहियों का
समर्पण देख कर तारकेन्दु समझ नहीं पा रहा था कि उसे अब क्या करना चाहिए?
“मेरे पास मत आना।” वेग को अपनी ओर बढ़ते हुए देख कर वह बोला। “देखो मैं
कहता हूँ मेरे पास मत आओ, तुम नहीं जानते मैं कौन हूँ? तू…तुम बहुत पछताओगे।”
अब तक वेग उसके बिल्कुल निकट पहुँच
चुका था और पास पहुँचते ही उसने तारकेन्दु के गाल
पर कस के एक चांटा मार दिया था। वह दर्द से चीख
उठा। “मुझे क्षमा कर दो… तुम जो भी हो परंतु भले मानस
दिखते हो, तुम कहो तो मैं उस के पैर पकड़ लूंगा... मुझे जाने दो।” तारकेन्दु का स्वर अब बदल चुका था।
“अब तुम्हारी वाणी कैसे बदल गयी? अभी तक तो तुम उस लड़की को चुड़ैल जैसा
कुछ कह कर बुला रहे थे।” वेग ने उसे दूसरा चांटा
मारते हुए कहा।
“परन्तु वो तो चुड़ैल ही है। मैंने तो केवल चुड़ैल को चुड़ैल ही बोला है।” तारकेन्दु
लगभग रो दिया था यह कहते हुए।
“वह लड़की च... चुड़ैल है!” वेग ने अंतिम शब्द धीरे
से कहे थे।
“हाँ… परंतु क्या तुम्हें यह बात नहीं पता थी?” तारकेन्दु ने आश्चर्य से पूछा। “पहले ही पूछ लेते
भाई इतना क्यों मारा?”
वेग ने उसका गला पकड़ लिया था। “ठीक है की चुड़ैल
है लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार सभी राष्ट्रों की चुड़ैलों के साथ एक संधि हुई थी
जो इन्हें नवराष्ट्रों की सीमा में स्वेच्छा से विचरण करने की अनुमति देती है। क्या
ऐसा नहीं है?” वेग ने क्रोधित होकर उससे पूछा।
“हाँ
यह सही है।” तारकेन्दु ने जवाब दिया।
“तो
फिर मुझे बताओ इसने कौनसा अपराध किया जो तुमने उसे चोट पहुँचाई है?”
“वो… वो… इसने इथार के कई क्षेत्रों में आतंक मचा रखा है।” वेग उसे
घूर रहा था। “मेरा तात्पर्य है कि इस पर हमें संदेह था और इसने थोड़ी देर पहले
हमारे कुछ सैनिकों पर भी हमला किया था इसलिए हम बस...”
“इसलिए क्या?”
“हम बस पूछताछ के उद्देश्य से इसे हिरासत में लेना चाहते थे।”
“मैं तुम्हारी आँखों में पढ़ सकता हूँ यह जवाब सच नहीं है।” वेग ने उसे पकड़ कर धरती से उपर उठा दिया, उसके
गले पर वेग की उंगलियों का दबाव बढ़ने लगा। “तुम्हारे पास
कुछ पलों का समय है और यह अंतिम अवसर है सच बोलने का। जीवित
रहना चाहते हो तो एक और झूठ मत बोलना।” वेग ने कहा।
“मैं... मैं… बताता हूँ, मुझे नीचे उतारो मेरी साँसे…” वह छटपटाते हुए विनती करने लगा।
“अंतिम अवसर, अब बताओ।” वेग ने उसे नीचे गिरा दिया और दुबारा पूछा।
“राजकीय आदेश से... हाँफ... हाँफ... हम… इसे पकड़ने आए थे।” तारकेन्दु हाँफते हुए बोला।
“मगर क्यों?” वेग ने पूछा।
“यह मैं नहीं जानता... मैं सच बोल रहा हूँ, मुझे जाने दो।” वह गिड़गिड़ाते हुए बोल रहा था। “बस हमें आदेश मिला था कि इसे
किसी भी सूरत में जीवित पकड़ना है। हम कई दिनों से इसकी
तलाश में घात लगा के बैठे थे परंतु यह हमारे जाल में नहीं आ पा रही थी रहे थी। इसे पकड़ने का दबाव बढ़ते जा रहा था सो हमें अपने राज्य की सीमा को पार
करके यहाँ आना पड़ा। मैं सच कह रहा हूँ इससे अधिक मैं
कुछ नहीं जानता, मुझे जाने दो।”
“अब जब तक पूरी सच्चाई सामने नहीं आ जाती
तुम्हें जाने कैसे दिया जा सकता है?” वेग रस्सी से उसके
हाथों को बाँधने लगा। “चाहे तुम हो या तुम्हारे राजा, अब यह
मुद्दा नवराष्ट्रों का है और इसका निर्णय भी वहीं
होगा।”
“नहीं ऐसा मत करो।” तारकेन्दु फिर गिड़गिड़ाने
लगा। “तुम जो कहोगे मैं करने को तैयार हूँ परंतु मुझे जाने
दो...”
वेग उसकी बात को अनसुना सा कर उस लड़की की ओर बढ़
चला। उस लड़की ने किसी प्रकार अपनी चेतना को संभाल के रखा था परंतु
शायद अब वो कमजोर पड़ चुकी थी। वेग की ओर देखते
हुए वो अपनी चेतना खोने लगी, वेग ने भी स्थिति को समझ लिया था इसीलिए उसने दौड़कर उस लड़की के गिरते
हुए शरीर को सहारा दिया, वह अचेत होकर वेग की बांहों में झूल गयी। एक क्षण के लिए फिर से वेग की
आँखें उसके चेहरे पर टिक गयी थी। वेग के लिए किसी स्त्री को स्पर्श करने का
यह पहला अनुभव था। इससे पहले उसने किसी भी स्त्री को इतने निकट से नहीं देखा था।
किसी आकर्षण में बँधे वेग की आँखें उसके चेहरे से नहीं हट रही
थी। तभी हवा चली और एक झोंके ने उस लड़की के बालों को छूआ तो कुछ बाल उसके चेहरे पर लहरा गये। इस व्यवधान में
वेग ने स्वयं को संभाल लिया और उसके कंधे के घाव को जाँचने लगा। उसने
घाव को समीप से देखा, तीर उसके कंधे में धंसा हुआ था जहाँ से अब भी रक्त बह रहा था।
“घाव बहुत गहरा है।” वेग
ने उसके घाव को देखते हुए कहा। “शायद रक्त बहुत अधिक बह चुका है।”
“वो… यह घाव के कारण मूर्छित नहीं हुई हैं।” सिपाहियों में से एक ने
कहा।
“क्या तात्पर्य है तुम्हारा?” वेग ने पलट कर उसकी ओर देखा जिससे वह
सिपाही थोड़ा घबरा सा गया। “तो फिर क्या हुआ है इसे? बताओ।”
“उस तीर में...” इतना कहकर वह तारकेन्दु
की ओर देखने लगा, उसे
मालूम था परंतु शायद वह यह सच अपने मुंह से नहीं बताना चाहता था। तारकेन्दु से उत्तर नहीं मिलता हुआ देख वेग ने लड़की को पेड़ के सहारे
लेटाया और खड़ा होकर उसकी ओर बढ़ा।
वेग की प्रतिक्रिया के अंदेशे मात्र
से तारकेन्दु के पसीने निकल आए थे। “उसमें… उसमें
हमने विष का प्रयोग किया था।”
“तुम लोगों ने इसे विष से बुझा हुआ तीर मारा है?” वेग ने उसकी गर्दन पकड़ कर
पूछा। “परंतु तुम लोग तो इसे जीवित पकड़ना चाहते थे फिर क्यों
ऐसा किया?” वेग ने लगभग चिल्ला कर कहा था जिससे
तारकेन्दु काँपने लगा।
“इसको जीवित पकड़ना आसान नहीं था, यह बहुत फुर्तीली और घातक है, यह विरोध ना कर सके बस
इसीलिए इस विष का उपयोग किया था।” उसने हरे रंग का तरल दिखाते हुए कहा। “अगर तीर लगने
के बाद भी यह हमारे हाथ नहीं लगती या हम इसे ढूंढ़ नहीं पाते तो उपचार के बिना यह अपने आप दम तोड़ देती और इससे हम सुरक्षित रहते।”
उसकी बातों से वेग तिलमिला रहा था।
"तो
फिर इसका उपचार कहाँ है?" वेग लगभग चिल्ला उठा था।
तारकेन्दु
ने अपनी कमर बन्द में हाथ डालकर दुबारा कुछ बाहर
निकाला। “इसके प्रयोग से कुछ ही देर
में विष का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।”
तरल
युक्त छोटी सी काँच की सीसी को उसके हाथ से लगभग छीन कर,
बिना विलंब किए वेग उस लड़की के पास गया और उसके मुंह में उस तरल की कुछ बुंदे डाल
दी।
“तुम लोग इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हो? किसी निर्दोष जीवन को
समाप्त करने का अधिकार तुम्हें किसने दिया है?” तारकेन्दु निरुत्तर सा सर झुका के वेग के आरोप सुन रहा था।
वेग
ने उसके कंधे से तीर निकाल कर उसके घाव को साफ किया और बहुत शीघ्र ही उस पर लेप
लगा कर कपड़ा भी लपेट दिया। परंतु वेग अब भी उस अंजान के जीवन के लिए चिंतित था।
“भाई
यह तरल उस विष की शत प्रतिशत काट है।" तारकेन्दु गिड़गिड़ा रहा था "अब यह
चुड़ैल, मेरा मतलब की यह लड़की अब ठीक हो जाएगी। मैं अब और तुम्हारे कुछ काम नहीं आ
सकता हूँ तो कृपा करके मुझे जाने दो।”
"नायक
हो ना तुम, तुमको कैसे जाने दिया जा सकता है। पुरस्कार तुम्हे ही बड़ा मिलने वाला था
ना तो कीमत तुम ही चुकाओगे।"
"लेकिन
मैं तो सबकुछ बता चुका हूँ और तुमने तो मुझे दंड भी दे दिया है।"
वेग
उसकी बात को अनसुना कर अन्य सिपाहियों की ओर मुड़ा “तुम लोग लेकिन अब जा
सकते हो, और हाँ इथार नरेश से ज़रूर कह देना कि उन्हें इस
घुसपैठ का जवाब अब नवराष्ट्रों के सामने देना होगा, तैयार रहें।” वेग ने बुत से बने खड़े सिपाहियों से कहा।
“श्रीमान, आपका नाम क्या है और आप कौन हैं? अगर किसी ने पूछा तो हम…” उनमें से एक ने पूछना चाहा जिसे बीच में ही रोककर वेग ने कहा।
“वेग, मेरा नाम वेग हैं और मैं गुरु शौर्य का
शिष्य हूँ। अभी मेरी पहचान के लिए यह पर्याप्त है।”
तारकेन्दु
वेग का परिचय सुनकर अंजान आशंकाओं से घबराने लगा था।
“धन्यवाद,
हम आभारी रहेंगे।” यह कहते हुए बाकी सभी ने अपने शस्त्र उठाये और वहाँ से चले गये।
कुछ समय के बाद उस लड़की की चेतना वापस लौटने लगी
थी, उसने आँखें खोली तो वेग उसके सामने बैठा था। उसने महसूस किया कि उसके कंधे से बाण निकल
चुका है और उस पर कोई लेप जैसा भी कुछ लगा हुआ है। अपने व्यवहार के लिए वह लज्जित थी इसलिए
वेग की आँखों में नहीं देख पा रही थी। उसने उठना चाहा
तो वेग ने उसे सहारा देकर खड़ा किया।
“क्या
तुम ठीक हो?” वेग ने पूछा।
उसने
सर को हिला कर हाँ मे जवाब दिया। “मेरे प्राण बचाने के लिए धन्यवाद, मैंने तुम्हें
शत्रु समझा इसके लिए… मैं… मैं क्षमा चाहती हूँ।” उसने पलकें नीचे करके कहा।
“इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, तुमने जो किया वह अपनी सुरक्षा के लिए किया और
मैंने जो किया वह मेरा कर्तव्य था।” वेग ने उसका अपराध
बोध कम करने के लिए कहा। “उस परिस्थिति में किसी भी अंजान पर
भरोसा करना हानिकारक हो सकता था इसलिए अपने आप को दोषी
मत समझो। मुझे थोड़ा भी बुरा नहीं लगा और मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है।” यह कहकर वेग थोड़ी देर के लिए चुप हो गया।
“मेरा नाम वेग है।” उसे चुप देखकर वेग ने आगे
कहा। “यहाँ से थोड़ी दूर पर ही एक आश्रम है जहाँ गुरु शौर्य
से मैं और मेरे साथी शिक्षा ग्रहण करते हैं।” इतना कहकर
वेग थोड़ा रुका इस आशा से कि वो भी कुछ कहे परंतु
उसे उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
“तुम अभी घायल हो और तुम्हें आराम की आवश्यकता है। मेरे साथ चलो मैं तुम्हें आश्रम तक लेकर चलता हूँ।” वेग ने एक ओर बढ़ते हुए कहा।
“मेरा नाम रूपसी है।” अचानक उस लड़की ने जवाब
दिया तो वेग ठिठक कर उसकी ओर पलटा।
“बहुत सुंदर नाम है।” वेग ने मुसकुरा कर कहा।
“मुझे अब जाना होगा।” वह थोड़ी चिंतित सी दिखाई
देने लगी थी। “मेरी बहने मेरे लिए परेशान हो रही होंगी।”
“परंतु तुम अभी जाने की स्थिति में नहीं हो, मैं तुम्हें इस प्रकार अकेले नहीं जाने दे
सकता।” वेग ने कहा।
“तुम्हारा बहुत धन्यवाद, परंतु मैं अब मैं
बिल्कुल ठीक हूँ और इस घाव से अब मुझे अधिक पीड़ा नहीं है, कुछ ही देर में यह पूरी
तरह ठीक हो जाएगा। मुझे पहले ही बहुत देर हो चुकी है।” रूपसी बोलते हुए हड़बड़ा सी रही थी।
“परंतु…” वेग कुछ कहने वाला था परंतु सामने का
दृश्य देख कर उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
रूपसी उसके देखते ही देखते अपने चुड़ैल के रूप में आ गयी
थी। उसके नाखून बाहर आ गये थे, आँखो का रंग गहरा गया था और शरीर से पंख बाहर निकल आए थे। वह वेग की ओर देख
रही थी और वेग भी उसे आश्चर्य से देख रहा था। रूपसी
ने आँखें वेग से हटा कर अपने आप को देखा, वेग
के सामने अपने आप को इस रूप में वह असहज महसूस कर रही थी शायद।
“अद्भुत... कैसे किया यह तुमने?” वेग ने उसकी असहजता को महसूस कर लिया था।
रूपसी ने अपने परों को फड़फड़ाया और महसूस किया कि वो ठीक
हैं। एक बार उसने खुले आकाश की ओर देखा और फिर एक क्षण के लिए अपनी आँखों को
बंद किया।
“फिर मिलेंगे वेग।” और यह कहकर वह अपनी दिशा की ओर उड़ चली।
“अपना ध्यान रखना।” वेग ने अपना हाथ हवा में उठा के उसे विदा देते हुए कहा।
वेग उसे जाते हुए देख रहा था तो रूपसी भी उसे मुड़ कर देख
रही थी। वेग ने उसे अपनी दृष्टि से ओझल होने तक
देखा, वह अब लौटने के लिए मुड़ने ही वाला
था कि उसे फिर से रूपसी दिखाई दी। वह
उसी की दिशा में वापस आ रही थी, उत्सुकता से वेग उसकी
प्रतीक्षा करने लगा और फिर जब वह पास आ गई तो।
“तुम्हारा
यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगी।” रूपसी ने समीप आते ही कहा। “मैं वचन देती हूँ जब
भी तुम्हें मेरी आवश्यकता होगी मैं तुम्हारी सहायता करने से पीछे नहीं हटूँगी,
चाहे इसमें मेरे प्राण ही क्यों ना चले जाएँ, केवल इतना ही कहना था वेग।” यह कहकर
रूपसी वापस अपनी दिशा में मुड़ गई।
“और अगर आवश्यकता ना हुई तो क्या हम कभी नहीं मिलेंगे?”
“मैं प्रार्थना करूँगी ऐसा ही हो।”
“कि हम कभी ना मिलें?”
“नहीं, यह कि तुम्हें मेरी आवश्यकता ना पड़े… फिर मिलेंगे वेग।”
वेग ने कुछ कहना चाहा परंतु उसे समझ नहीं आया कुछ भी कहने
को, उसका हाथ उठा ही रह गया और रूपसी अपने रास्ते को निकल गई। वेग ने
एक बार तारकेन्दु को देखा और फिर उसे लेकर आश्रम की और बढ़ चला।
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