सतलज नगर
उधर विधारा की ओर बढ़ते हुए और अपने शिष्यों के साथ हुई इन
घटनाओं से अंजान शौर्य के जेहन में अतीत घूम रहा था। शौर्य
लगभग पच्चीस वर्ष पीछे चले गये थे... सतलज नगर को पार करते हुए उस चीख और पुकार को सुन शौर्य व
उसके साथियों विराट, अंगद, तेजस और देव को रुक जाना पड़ा था। वो तुरंत उस और बढ़ चले थे। उस महिला की चीखें
बहुत हृदयविदारक थी, वह विलाप कर रही थी शायद किसी अपने
के लिए।
“अरे ले गई वो… बचा लो कोई मेरे किशोर को…” फिर वह दहाड़े मार कर रोने लगी। “अरे जाओ भाइयों,
कोई तो जाओ…वो मार डालेगी उसे।”
वहाँ
कुछ और महिलाएँ उसे संभालने का प्रयास कर रही थी, दुख और आँसू परंतु उनके चेहरों
पर भी थे। वह महिला लगातार प्रार्थना कर रही थी। चारों ओर अब तक भगदड़ फैल चुकी थी। कुछ पुरुष भी अपने हाथों में छोटे-बड़े औजारों को हथियार के भाँति थामे वहाँ दौड़ कर आए थे। आस पास घरों में से निकलने का प्रयास करते बच्चों को उनके बड़े भीतर धकेल
रहे थे। सब के चेहरों पर भय था और उनकी
दृष्टि नगर के बाहर आकाश की ओर उठी हुई थी। शौर्य व उसके साथी अब तक वहाँ
उनके निकट पहुँच चुके थे।
अब
बस संवेदना युक्त चर्चाएँ चल रही थी वहाँ। “इसके भाई को
उठा ले गई है, बेचारी...” कोई अपने साथ खड़े दूसरे व्यक्ति को बता रहा था।
“ओह...
बहुत बुरा हुआ भाई।” दूसरे ने भी दुख व्यक्त किया।”
“इस
आतंक का तो अंत भी दिखाई नहीं दे रहा है।”
“क्या
हो क्या रहा है यहाँ पर?” अंगद ने आश्चर्य चकित होते हुए अपने साथियों को देखकर
पूछा, तब तक सब अपने अश्वों से उतर चुके थे।
“दो
माह में यह चौथी बार हुआ है।” कुछ
दूसरे लोग भी बातें कर रहे थे।
“इतनी बड़ी सेना किस काम की है भाई? इनका आतंक
तो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है और हमारा शासन कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है।”
“वो तो राजधानी में सुरक्षित हैं और हमें छोड़
रखा है भगवान भरोसे, इन थोड़े से नालायक सिपाहियों के
साथ।” कुछ नगर प्रहरी भी वहाँ दौड़ कर पहुँचे थे, उनको देखकर एक ने गुस्से से परंतु
धीमे स्वर में यह कहा था।
“सुनो भाई।” विराट ने सामने से गुजरते हुए उस
व्यक्ति को रोकते हुए कहा। “क्या तुम मुझे बताओगे कि यहाँ
क्या हुआ है?”
उसने थोड़ा आश्चर्य से पहले विराट को
देखा और फिर बाकी के योद्धाओं को। “कहीं बाहर से आए हो?” उसने जवाब में उनसे ही प्रश्न किया।
“हाँ, हम यहाँ परदेशी हैं, दूर से आए हैं।”
“तो क्यों आए हो भाई? यहाँ तो इन चुड़ैलों ने हमसे हमारे जीवन
की सुख शांति छीन रखी है।” वह उदासी के साथ बोला। “एक चुड़ैल इस अभागी के भाई को उठा के ले
गई है, अभी कुछ देर पहले।”
“कहाँ? किस दिशा में गई है वो?” अंगद के उँचे स्वर ने सब का ध्यान उधर
खींच लिया था।
अंगद का क्रोधित रूप देख उस व्यक्ति का बस हाथ उस दिशा की ओर उठा था। वह
आश्चर्य से उन परदेशी लोगों को देख रहा था। अन्य दूसरे लोग भी इस प्रश्न की मंशा
जानने के लिए उत्सुकता से उनकी ओर देखने लगे थे।
वहाँ पहुँचे सिपाही
परंतु उन्हें संदेह से देख रहे थे। “कौन
हो तुम लोग और कहाँ से आए हो?” उनमें से एक ने पूछा।
“आज कुछ कड़वा खा लिया है क्या? इतना उँचा स्वर किस काम का
भला।” अंगद को उन सिपाहियों के प्रश्न में शंका पसंद
नहीं आई थी।
“अंगद, तेजस, देव चलो
मेरे साथ।” विराट अपने अश्व की ओर बढ़ते हुए बोला।
“वह अभी दूर नहीं गई होगी।”
“रुक जाओ तुम लोग, पहले अपनी पहचान बताओ।” वह सिपाही अब भी वैसे ही पूछ रहा था।
“अधिक सवाल करके हमारा समय मत बर्बाद करो, लौट
कर हम तुम्हें जवाब दे देंगे।”
“मैंने कहा रुक जाओ।” जवाब ना मिलता देख
सिपाहियों ने उनका रास्ता रोक लिया।
अंगद ने अश्व से उतरना चाहा तो विराट ने उसे रोक दिया। “शौर्य
तुम रुको, तुम्हारा यहीं रुकना ठीक रहेगा।” फिर वह अंगद की ओर मुड़ा।
“यह जानना इन लोगों का अधिकार है, तरीका इनका भले ही अनुचित हो। अब चलो मेरे साथ।”
“तुम लोगों को जो जानना है वह ये तुम्हें अच्छी प्रकार से बता देंगे।” तेजस ने अपने अश्व
को उस दिशा में दौड़ाते हुए कहा।
“शंका
करने की आवश्यकता नहीं है सिपाहियों, हम मित्र हैं। हम लोग भी तुम्हारे जैसे ही
सिपाही हैं।”
“किस
देश के सिपाही हो तुम लोग?
“अगर
मानो तो यह भी हमारा देश है,"
"पहेलियाँ
मत बुझाओ, साफ साफ बताओ।"
"जब
कठिनाई तुम लोगों के लिए जटिल होने लगती है तब हम तुम्हारी सहायता करने चले आते हैं।”
सब लोग उनका परिचय जानने को उत्सुक थे। “हमें तपोवनी कहते हैं।”
“तपोवनी!”
भीड़ में फुसफुसाहट सी होने लगी थी। कुछ
लोग वहाँ थे जिन्होंने यह नाम पहले सुन रखा था। सिपाही
भी शायद ये नाम जानते थे, इसके बाद उन्होंने दूसरा
प्रश्न पूछना ठीक नहीं समझा।
“और हाँ, आप लोग ये मत समझिए कि आप के शासन को आप लोगों की चिंता नहीं है,
हमें यहाँ उन लोगों ने ही बुलाया है, आप लोगों की सुरक्षा के लिए।”
“तो क्या आप हम लोगों को इन चुड़ैलों से छुटकारा दिला सकते हैं?” भीड़ में से एक ने आगे बढ़कर पूछा।
“हाँ बिल्कुल। मैं क्षमा चाहता हूँ क्योंकि शायद हमें आने में थोड़ी देर हो गई परंतु अब मेरा वचन है आपसे, इन चुड़ैलों का आतंक
आतिशीघ्र ही समाप्त होगा।” शौर्य के स्वर में चुड़ैलों के लिए क्रोध
था।
*
“हमें अलग-अलग दिशाओं से आगे बढ़ाना चाहिए, उसे
ढूँढने में आसानी होगी।” उस चुड़ैल के पीछे जाते हुए
तेजस ने बाकियों को यह सुझाव दिया था।
“सही कहा तुमने तेजस।”
विराट के साथ सभी को यह सुझाव ठीक लगा इसलिए तुरंत
ही सब अलग-अलग रास्तों से आगे बढ़ने लगे। नगर से बहुत आगे आने तक भी उस चुड़ैल का
कोई निशान उन्हे नहीं मिला था। देव, अंगद और तेजस के साथ विराट ने भी लगभग आशा
छोड़ दी थी। एक जलधारा के समीप आकर विराट भी रुक गया था। निराशा लिए हुए वह वापस
मुड़ने की सोच ही रहा था कि उसे थोड़ी दूरी पर उस टीले के पीछे किसी हलचल का आभास
हुआ। एक क्षण कुछ सोच के वह अश्व से नीचे उतरा और उँचाई की ओर
बढ़ने लगा, उसकी तलवार उसके हाथ में थी। टीले के पार का दृश्य देख उसकी आँखें फटी रह गई, वहाँ एक नहीं कुछ पाँच-छः चुड़ैलें एक युवक का शरीर नोच कर खा रही थी। यह शायद वही युवक था जिसे अभी-अभी सतलज नगर से
इनमें से ही किसी एक ने उठाया था।
सभी चुड़ैलों का ध्यान अपनी भूख मिटाने में था परंतु दो
क्षण में ही उन्हें किसी मनुष्य के उनके आस पास होने का अहसास हो गया था। सब
की दृष्टि लगभग एक साथ विराट की ओर उठी थी।
पहले उनके चेहरों पर आश्चर्य दिखाई दिया जो अगले क्षण प्रसन्नता में बदल गया।
“यह
तो जैसे माँगा हुआ वरदान मिल गया हो बहनों।” उनमें से एक ने कहा।
“सच,
मेरा मन भी अभी भरा नहीं था।” दूसरी ने कहा। “इसका शिकार मैं करूँगी, तुम सब यहीं रुको।” वह आगे बढ़ने ही वाली थी
परंतु विराट को अपनी ओर आते हुए देख वह वहीं रुक
गई। उसने मुड़ के बाकी चुड़ैलों को देखा।
“परंतु यह तो स्वयं मरने आ रहा है, इसकी बुद्धि शायद ठीक नहीं है।” एक और ने कहा। विराट अब भी उनकी ओर चले आ रहा था, उसने अपनी तलवार पीछे छुपा ली थी।
“गुस्सा तो देखो तनिक इसका, लग रहा है हम
इसे नहीं, यह हमें खा जाएगा... हा हा हा…”
विराट समीप आते-आते अब दौड़ने लगा था, उसने
मुकाबले के लिए तलवार को सामने कर लिया। विराट के इस
रूप को देख सभी सावधान हो गई और आस पास फैल गई।
“मुझे लग रहा है कि आज शिकार खेलने में थोड़ा आनंद भी आएगा।” वही चुड़ैल बोली जिसने विराट का शिकार करने की इच्छा जताई थी।
“तो फिर एक खेल हो जाए?”
“कैसा खेल?”
“जो इसकी तलवार सबसे पहले छिनेगा या इसके हाथ से नीचे गिराएगा, इस पर सबसे पहला अधिकार भी उसी का होगा।”
“हा हा हा... बहुत बढ़िया।” सभी हँसते हुए हवा में उठ गई और विराट के आस पास में मंडराने लगी।
विराट चारों ओर से घिरा हुआ था परंतु उसकी फुर्ती को देखकर
कोई भी
पहला हमला करने का साहस नहीं कर पा रही थी क्योंकि विराट की तलवार उन्हें नुकसान
पहुँचा सकती थी। विराट के पास पहुँचना जटिल होता देख उनमें से एक ने सूखा हुआ मगर
भारी सा पेड़ का एक तना उठा लिया और विराट की ओर पूरी शक्ति से फेंक दिया, जिसे
विराट ने आसानी से बचा भी लिया और अपने दूसरे हाथ में उसे संभाल भी लिया। वह
चुड़ैल विराट की इस अद्भुत सी फुर्ती को देखने के बाद उस आश्चर्य से बाहर निकलने
का प्रयास कर ही रही थी कि विराट ने वही तना घुमा के उसकी ओर फेंक मारा। एक क्षण
को असावधान उस चुड़ैल की छाती से वह तना जा टकराया था, एक चीख के साथ वह धरती पर आ
गिरी। परंतु इसी क्षण विराट की पीठ पर दूसरी चुड़ैल ने पूरी शक्ति से वार किया, विराट उसकी टक्कर से नीचे गिर पड़ा। वह उठता उससे पहले ही एक चुड़ैल ने उसके एक पैर को पकड़ के उसे हवा में
उठा लिया। उलटे लटके होने के कारण विराट अपना संतुलन
नहीं बना पा रहा था और अधिक उँचाई पर पहुँचने से पहले उसका उस चुड़ैल के पंजे से छूटना भी आवश्यक था। इसी बीच अन्य
चुड़ैलें लगातार उस पर हमला किए जा रही थी। विराट ने चुड़ैलों के हमले की परवाह
किए बिना अपने शरीर को उपर की ओर उठाया और उस चुड़ैल के पंजे पर तलवार से वार कर
दिया। तलवार उसे छू के निकल गई परंतु उसकी पकड़ को ढीली करने के लिए यह पर्याप्त था। विराट फिर धरती पर आ गिरा था।
चुड़ैल की पकड़ में आना जोखिमभरा हो
सकता था यह विराट को समझ आ गया था, वह उन्हें दुबारा यह
अवसर नहीं देना चाहता था। वह फिर से उठ खड़ा हुआ परंतु
पूरी सावधानी के साथ। एक चुड़ैल को विराट ने घायल कर दिया था जो उठने का प्रयास कर रही थी परंतु बाकी की पाँच
चुड़ैलें विराट के वारों से बचते हुए हमला करने का प्रयास किए जा रही थी। विराट क्योंकि आगे बढ़ कर उन पर हमला नहीं
कर सकता था इसलिए उसे थोड़ी असावधानी दिखानी भी आवश्यक थी जिससे वो उसके समीप आ
सकें। विराट का ध्यान एक क्षण को अपने पीछे
से हटा तो वह चुड़ैल अवसर का लाभ उठा उस पर पीछे से झपटी।
उसकी आशा के विपरीत विराट को उसके हमले का आभास था, पास पहुँचते
ही विराट ने घूम कर उसकी गर्दन को पकड़ लिया। विराट उसे
गुस्से से देख रहा था, उसका तलवार वाला हाथ उपर उठा उस
चुड़ैल का शरीर चिरने के लिए परंतु दूसरी चुड़ैल
ने उसका हाथ वहीं पर रोक लिया। उसने विराट का हाथ
मजबूती से थाम लिया था। विराट के दोनों हाथों का उलझा होना बाकी
चुड़ैलों के लिए बहुत सुनहरा अवसर था। विराट पर एक साथ कई वार होने लगे परंतु
मजबूत इच्छा शक्ति के आगे उनके ये वार कोई प्रभाव नहीं कर पा रहे थे। हमला बढ़ता
जा रहा था, दोनों ओर से खींचतान भी बराबर चल रही थी। विराट अपनी पकड़ में आई उस
चुड़ैल को नहीं छोड़ना चाहता था जो उसकी पकड़ में फँस कर छटपटा रही थी। कुछ सोच कर
विराट ने उस चुड़ैल को सामने खड़े एक पेड़ से कस के टकरा दिया
और उसकी गर्दन को छोड़ दिया। टक्कर के कारण उस चुड़ैल का सर घूम रहा था परंतु उस दम घोटूँ अहसास से निकलकर उसे
अधिक आराम मिला था। विराट
ने हमले से घबरा के उसे छोड़ दिया था, यह सोचना उसकी भूल थी। क्योंकि
विराट ने अपने दाएँ हाथ जो की एक चुड़ैल की पकड़
में था, से तलवार को उलटे हाथ में थामा और पलट के एक वार उस चुड़ैल पर कर दिया जो अभी भी अपनी सांसो को संभाल रही थी। उस चुड़ैल को अंतिम समय यह अहसास हुआ परंतु तब तक देर हो चुकी थी। वह बचने के लिए अपना स्थान बदलती उससे पहले ही उसकी गर्दन
धरती पर आ गिरी थी। दूसरा वार शायद उस चुड़ैल पर होता जिसने विराट का दायां हाथ
पकड़ रखा था इसलिए उसने घबराकर विराट का हाथ छोड़
दिया और तुरंत पीछे हो गई।
चुड़ैलों को अपनी जीत पर पूरा भरोसा था और एक मनुष्य के
हाथों अपनी किसी साथी की मौत का उन्हें तनिक भी अनुमान
नहीं था। वो सब एक साथ चीत्कार उठी। “अमिरा…” अविश्वास से सब की आँखें फटी रह गई
थी “नहीं, यह नहीं हो सकता।”
“इसने हमारी अमिरा को मार डाला।” वो चीख रही थी।
“तूने हमारी बहन को मार के अपनी मृत्यु को
बहुत ही दुखद कर लिया है मनुष्य।”
कहना आसान था परंतु विराट पर हमला करना उतना ही कठिन भी था। यह
उन चुड़ैलों को भी समझ आ गया था कि वह कोई साधारण मनुष्य तो नहीं था परंतु
उनका यह दुर्भाग्य था कि उन्हें इससे अधिक कुछ
और नहीं पता था। अगर पता होता तो
शायद अमिरा के प्राण ना जाते। पेड़ के तने से
विराट ने जिसे घायल किया था वह इन सब के बीच संभल
भी चुकी थी और अब तक वह विराट के ठीक सर के उपर आ चुकी थी। उसके हाथ में वह
आधा खाया हुआ शव था, विराट को बिना आभास हुए वह थोड़ा नीचे आई और उस शव को विराट के उपर गिरा दिया। अचानक हुई इस हरकत से विराट का बौखलाना स्वाभाविक था। उस शव का रक्त विराट के चेहरे और कपड़ों
पर फैल गया था। चाल अच्छी थी जो सफल भी हुई
क्योंकि शव के इस प्रकार गिरने से विराट विचलित हो
गया था। शव गिराने वाली चुड़ैल उसके सर पर आ बैठी, विराट एक क्षण थोड़ा लड़खड़ाया परंतु अगले क्षण बाकी चुड़ैलों ने जो हमला
प्रारम्भ किया तो वह लड़खड़ाता ही चला गया। अब विराट
के पिटने की बारी थी, दो चुड़ैलों
ने उसके दोनों हाथों को पकड़ लिया और फिर से उसे हवा में उठा लिया। उनका पहला उद्देश्य अब भी उसकी तलवार को उसके हाथ से गिराने का ही था। विराट जैसी शक्ति को संभालना बहुत भारी
महसूस हो रहा था उन दोनों के लिए तो एक और चुड़ैल ने विराट के पैरो को पकड़ लिया।
आँखों में ही इशारा कर उन चुड़ैलों ने विराट को उँचाई पर ले
जाने का निर्णय किया परंतु तभी! वह सनसनाती हुई सी तलवार एक
दिशा से आई और विराट के पैरो को थामे उस चुड़ैल के एक कंधे के नीचे से घुसते हुए
दूसरे कंधे के नीचे से पार हो गई। विराट की सहायता करने
देव वहाँ आ पहुँचा था। तलवार ने शायद उस चुड़ैल
का हृदय भेद दिया था, उस
अंतिम धड़कन के साथ उसका निर्जीव शरीर शांत होकर
नीचे आ गिरा।
उसके मरते ही एक साथ बाकी चुड़ैलों की चीख निकल गई थी। “रत्ना भी
मारी गई…”
“इसके और भी साथी हैं…”
“चलो यहाँ से, भागो सब।”
देव समीप पहुँच रहा था। विराट
उन दो चुड़ैलों के पंजों में अभी भी लटका था। विराट से
निपटना अब बची हुई चार चुड़ैलों को कठिन दिखाई देने लगा।
“तूम जो भी हो, हम तुझे जीवित नहीं छोड़ेंगे।” उनमें से एक यह कहती हुई उपर उड़ने लगी, विराट के हाथों को
पकड़े उन दोनों चुड़ैलों ने भी विराट को छोड़ना चाहा परंतु उनमें से एक ऐसा ना कर
सकी क्योंकि विराट ने भी उसका हाथ पकड़ रखा था। वह उससे छूटने के लिए प्रयास करने
लगी परंतु विराट भी उसे धरती पर उतारने में लगा हुआ था।
“पूर्णा…
मुझे इससे बचाओ... आहह... इसने मुझे पकड़ लिया है।” वह सहायता के लिए चिल्लाने
लगी।
“गिरजा…
घबराना मत, हम आ रहे हैं।” पूर्णा ने उसके दूसरे हाथ को थाम लिया और उपर उठाने
लगी।
उसे फँसा देख बाकी चुड़ैलों ने पूर्णा को पकड़ लिया और दोनों को उपर
उठने में सहायता करने लगी ताकि विराट स्वयं उसे छोड़ दे। चारों के एकत्रित
प्रयास से विराट का शरीर हवा में उठने लगा था कि तभी देव,
विराट के पैरो से आ झूला। खींचतान चालू हो गई थी, विराट और देव अपने वजन के
अलावा कुछ और उपयोग नहीं कर सकते थे जबकि चुड़ैल अपना पूरा बल लगा के उड़ रही थी।
वजन पर बल भारी होने लगा था कि तभी विराट को फिर सहायता मिल गई, तेजस और अंगद भी आ गये थे वहाँ। स्थिति समझ कर
तेजस ने धनुष पर बाण चढ़ा लिया और निशाने पर चला दिया। तीर
पूर्णा के पैर में लगा, वह दर्द से तड़प उठी और गिरजा
उसके हाथ से छूट गई। विराट और देव उसे लेकर एक के उपर
एक नीचे आ गिरे। गिरजा ने भागना चाहा परंतु विराट ने
उसे फिर से नीचे पटक कर काबू में कर लिया।
“पूर्णा, मुझे बचाओ…” गिरजा को उनकी पकड़ में अपनी मृत्यु दिखाई
दे रही थी।
अब तक दो चुड़ैलें मारी जा चुकी थी, एक
विराट की पकड़ में थी और जो तीन चुड़ैलें बची थी
वो भी चोटिल हो चुकी थी। अब उनका वहाँ रुकना आत्महत्या करने के
जैसा था क्योंकि तेजस और अंगद भी आ गये थे।
“जुगनी,
पूर्णा भागो यहाँ से… ये लोग बहुत अधिक हैं।”
“रुक
जाओ… मुझे छोड़ कर मत जाओ, ये मुझे भी मार डालेगा।” गिरजा भय से रोने लगी थी।
*
उन
दो चुड़ैलों के साथ उस युवक के शव को अश्वों पर लाद के विराट और उसके साथी वापस
लौट आए थे। तीसरी चुड़ैल को विराट बंदी बना कर अपने साथ ले आया था। भीड़ उनके पीछे-पीछे घटनास्थल तक आ गई थी। युवक के
शव को देख उसके परिजन विलाप करने लगे।
“एक नहीं, कुल छः चुड़ैलें थी।” विराट शौर्य के पास आते हुए बोला। “दो मारी
गई और यह एक हमारे हाथ लगी, बाकी
भाग गई।”
“इसे जीवित क्यों छोड़ा? मार डालो इसे भी।”
उसके इर्द गिर्द क्रोधित भीड़ जमा हो गई थी।
“हाँ समाप्त करो इसे भी, इसने ना जाने हमारे कितने लोगों के
प्राण लिए हैं अभी तक।” चारों ओर मार डालो, समाप्त करो का स्वर गूंजने लगा था।
“शांत हो जाओ, इसको मारना समस्या का हल नहीं है।” शौर्य ने सब को शांत करते हुए कहा। “पहले हमें इसकी
जड़ तक पहुँचना है, शायद यह हमारे कुछ काम आ सके।”
शौर्य की बात ने उनको शांत करने के साथ उन्हें भरोसा भी दिला दिया था कि वो इस
समस्या को समाप्त करेंगे।
थोड़ी देर बाद सभी फिर से अपने पथ पर चल दिए थे। सतलज
से एक और अश्व लेकर उस पर अपनी कैदी चुड़ैल को बाँध दिया था विराट ने। देव ने उसके अश्व की लगाम अपने हाथ में थामी हुई थी।
सतलज से बहुत दूर... “रोको मेरे अश्व को।” गिरिजा ने अचानक से कहा परंतु सब ने उसे अनसुना कर दिया और आगे बढ़ते रहे।
“मैंने कहा रुको।” वह थोड़ा उँचे
स्वर में बोली।
“शांति के साथ बैठी रहो और चुपचाप चलती रहो।” देव
ने उसके अश्व की लगाम को खींचते हुए कहा।
“मुझे पेशाब करना है।” उसका स्वर इस बार बहुत उँचा था, सब एक साथ रुक गये थे “कबसे बस चले जा रहे हो, चले जा रहे हो, तुम लोग थकते नहीं क्या?
मैंने कब से रोक के रखा है कि तुम अपने आप से ही कहीं रुक जाओ
तो मैं भी… परंतु तुम, तुम
लोग थकते नहीं क्या?
सब पीछे मुड़ गये थे, विराट ने सब के चेहरे
देखे एक बार और उत्तर दिया। “नहीं।”
“देव जाओ और इसे... जो करना है करवा के ले
आओ।”
“मैं… मैं… क्यों? मैं नहीं जाऊँगा।” मना करने और ना करने की
विचित्र सी स्थिति में था देव। “अब यही एक काम बचा है कि मैं
चुड़ैलों को… ये…ये सब करवाता
फिरूँ।”
“देव, मूर्खों की भाँति बर्ताव मत करो,
तुम्हें कुछ करवाना नहीं है, वह स्वयं कर लेगी जो कुछ उसे करना
है।”
“यह...
यह मुझे नहीं पसंद है विराट।”
“देव, तुम्हें उसे केवल अश्व से उतारने को कहा है, व्यर्थ ही बिगड़ने की आवश्यकता नहीं है।” विराट ने उसे समझाया। “हाँ, परंतु ये भाग ना जाए
इसका ध्यान रखना।”
“मेरे हाथ खोलो।” देव ने उसे अश्व से उतार दिया
तो वह बोली।
“अब महारानी की भाँति हठ करना बंद करो और
चुपचाप वो करके आ जाओ जिसके लिए हमें रोका है।”
“तुम लोगों को इतनी समझ भी नहीं है क्या? मैं
ऐसे कैसे कर सकती हूँ, बिना अपने हाथों की सहायता के? मैं इस प्रकार से नहीं करूँगी।”
“अगर हाथ खोल के आराम से करने की इच्छा है तो सूर्यनगरी पहुँचने तक रोक के
रखो और नहीं रोक सकती तो शीघ्र जाओ और करके आओ”
“उन्ह…” उनको नहीं मानते देख वह पैर पटक कर चली
गई।
बेड़ियों के बाहर हथेलियों की सहायता से कठिनाईपूर्वक गिरिजा
ने वह किया और गुस्से के साथ वापस अश्व तक लौट आई। देव
उसे वापस अश्व पर बैठाने लगा तो शौर्य, विराट, तेजस और अंगद आगे बढ़ चले।
“इनसे निपटना कठिन होगा शौर्य।” विराट ने कहा था।
“ऐसा क्यों कह रहे हो विराट?”
“क्योंकि ये कोई दस बीस या सौ नहीं है, इनका
पूरा साम्राज्य है यहाँ।”
“चुड़ैलें ही तो हैं, ये राष्ट्र अपनी सेना
का उपयोग क्यों नहीं करते इन चुड़ैलों के विरुद्ध?” अंगद ने जिज्ञासा से पूछा।
“शायद ये कठिन रहा होगा अन्यथा ये लोग हमें बुलाते ही क्यों?” शौर्य ने इसका जवाब दिया। “और क्या बताया इसने?”
“क्या बताएगी शौर्य? पहले प्रश्न तो मालूम हो कि
क्या पूछना है? तब ना यह कुछ बताएगी।” विराट ने हलके व्यंग से कही थी यह बात। “इनकी रानी
है कोई अजरा, और भी कुछ चुड़ैलों के नाम ले रही थी,
मेरा तात्पर्य है हमें डरा रही थी। उदीष्ठा
पहुँच कर ही मालूम पड़ेगा कि समस्या क्या है और क्यों है?”
देव और गिरिजा कुछ अंतराल पर उनके पीछे चल रहे थे।
“देव,” गिरजा ने धीरे से पुकारा तो देव ने उसकी
ओर देखा। “यही नाम है ना तुम्हारा?”
देव जवाब में केवल उसे देख रहा था। “देव,
तुमने भले ही मेरी एक साथिन को मारा हो फिर भी ना
जाने क्यों तुमसे घृणा नहीं कर पा रही हूँ।”
“क्यों? अभी तक तो तुम हमें धमकी दे रही थी।”
“नहीं जानती क्यों, परंतु तुम में कोई तो आकर्षण
है, तुमसे दृष्टि हटती
ही नहीं हैं।” गिरिजा की आँखों में एक चमक सी उभर आई थी।
देव उसकी बात सुनकर कुछ देर मौन
हो उसे देखता रहा, उसने अपने
साथियों को देखा जो उनसे कुछ आगे थे “सच! मगर क्यों? बताओ।” उसने अपने अश्व को
उसके निकट कर लिया।
“मैंने
आज तक ना जाने कितने पुरुष देखें हैं परंतु सच, उनमें तुम जैसा पुरुष कोई नहीं
था।”
“मैं भी तो जानूँ कि ऐसा क्या देखा तुमने मुझमें? खुलकर कहो ना।” देव के चेहरे पर उत्सुकता उभर
आई थी।
“तुम्हारे चेहरे से छलकता यह तेज और ये मजबूत भुजाएँ, तुम्हारा पूरा व्यक्तित्व मुझे तुम्हारी ओर आकर्षित सा कर रहा है।” देव की आँखें बराबर अपने साथियों पर थी कि कहीं उसे कोई देख ना रहा हो।
“क्या ऐसा है?” उसका मन गदगद सा हो रहा था।
“तुमको देखती हूँ तो आगे पीछे का कोई विचार मन में नहीं रहता है।
मेरा मन करता है… मन करता है कि मैं...” उसने एक लंबी आह भर के अपने शरीर को झटका दिया जैसे किसी कल्पना से बाहर
निकल कर आई थी। कुछ देर के लिए वह मौन हो गई थी।
देव की आँखें अब भी अपने साथियों
पर ही थी परंतु वह रुक-रुक के एक दृष्टि उस पर डाल रहा था। “तुम्हारी आँखों में उतर जाना चाहती हूँ… मेरी ओर देखो, देखो ना देव।”
“एक बार छोड़ो सब की चिंता और केवल मुझे देखो देव, क्या मैं इस योग्य भी नहीं हूँ? क्या तुम सच में मुझे देखना
नहीं चाहते? कुछ भी नहीं, मेरी आँखें, मेरे होंठ, मेरी सांसो का चलना और वो तृष्णा
जो तुम्हें पाने की है?” उसने अपने
पैर से देव के अश्व की नकेल खींच दी, दोनों अश्व एक साथ
रुक गये।
“मत रोको अपने आप को, देखो मुझे।” देव की दृष्टि अब उस पर ठहर गई थी, वह उसे निहार रहा था।
गिरिजा मानव रूप में बहुत आकर्षक दिख रही थी। चुड़ैल रूप को देखकर देव ने
इस भोलेपन की कल्पना भी नहीं की होगी जो अब उसके
चेहरे पर थी।
कुछ देर देव को यूँही अपने आप को देख लेने के बाद गिरिजा ने कहा।
“मेरी आँखों में देख के अब कहो क्या मैं देखने के योग्य नहीं हूँ?” देव की आँखें उसकी आँखों में थी अब।
“निसंदेह हो, तुम सच में बहुत सुंदर हो।”
देव ने भी उसकी सुंदरता की सराहना करते हुए कहा। “तुम निसंदेह बहुत सुंदर हो।” दोनों की आँखे अपलक एक दूसरे की आँखों पर
ठहरी थी।
“तो क्या मैं पसंद हूँ देव, मुझे छूना नहीं
चाहोगे? मैं तुम्हारे स्पर्श के लिए तड़प रही हूँ।” देव जैसे उसकी आँखों से बँध सा चुका था।” मुझे छूलो देव, इन बेड़ियों को हटा के। मैं तुममें एक बार समा जाना चाहती हूँ, बिना किसी बंदिश के। इन बेड़ियों को हटा दो
देव, जो मेरे तुम्हारे बीच में है।”
“मैं भी हूँ तुम दोनों के बीच में।” अचानक इस
आवाज को सुन दोनों का ध्यान टूटा। उनको रुका देख विराट
वहाँ आ गया था। “क्या चल रहा है यहाँ देव?”
“अरे कुछ नहीं… चलो-चलो हमें देर हो रही है।” विराट से यह कह कर देव गिरिजा की ओर मुड़ा “क्षमा चाहता हूँ इस रुकावट के लिए, ये ऐसा ही है, सदा बीच में टपकता है।”
“वो तीनों तुम्हारी प्रतीक्षा में वहाँ
खड़े हैं।” गिरिजा हक्की-बक्की सी खड़ी उन दोनों को देख
रही थी। “और तुम इस चुड़ैल के साथ खड़े होकर काम कथा लिख रहे हो।”
“तुम लोग इसे मेरे साथ छोड़ के आगे बढ़े जा रहे थे तो मैं क्या करता? ये मेरे साथ खेल रही थी तो बस थोड़ा मनोरंजन मैं भी करने लगा।” देव आगे बढ़ते हुए बोला।
“तुम क्यों ऐसे खड़ी हो?”
आश्चर्य की मूर्ति बनी गिरिजा से विराट ने कहा। “हा हा …अरे हम तपोवनी हैं, छोटे मोटे
सम्मोहन से भटक गये तो कैसे लड़ेंगे बुराई से। चल पगली… हा हा...” विराट
ने हल्के से हँसते हुए उसके अश्व की लगाम थाम ली और आगे बढ़ गया। गिरिजा की
इस स्थिति पर बाकी लोगों को भी हँसी आ गई थी।
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